Muharram 2021: History of ‘Al Hijri’, Significance, Date


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Muharram 2021: History of 'Al Hijri', Significance, Date

Muharram 2021: History of ‘Al Hijri’, Significance, Date

Muharram 2021: Date, time, significance || History of ‘Al Hijri’ or Islamic New Year || मुहर्रम 2021: तारीख, समय, महत्व, ‘अल हिजरी’ और इस्लामिक नव वर्ष का इतिहास

Muharram 2021: History of ‘Al Hijri’, Significance, Date: मुहर्रम शब्द का अर्थ है ‘अनुमति नहीं‘ या ‘निषिद्ध’। दुनिया भर के मुसलमानों को युद्ध जैसी गतिविधियों में भाग लेने से प्रतिबंधित किया जाता है और इसके बजाय वे अपना समय नमाज और अल्लाह को याद करने में बिताते हैं।


मुहर्रम क्या है? मुहर्रम क्यों मनाया जाता है?: What is Muharram? Why is Muharram celebrated?

 

मुहर्रम 2021  इस्लामिक कैलेंडर या हिजरी कैलेंडर में पहला महीना माना जाता है, मुहर्रम दुनिया भर के मुसलमानों के लिए दूसरा सबसे पवित्र महीना है। दिन को अल हिजरी या इस्लैमिक न्यू ईयर के रूप में भी जाना जाता है। यह दिन मक्का से मदीना तक पैगंबर मुहम्मद के प्रवास का भी प्रतीक है।

इस्लामिक कैलेंडर में 354 दिन हैं जिन्हें 12 महीनों में विभाजित किया गया है और मुहर्रम पहला महीना है। 

पहले महीने के बाद सफ़र, रबी-अल-थानी, जुमादा अल-अव्वल, जुमादा एथलीट-थानियाह, रज्जब, शाबान, रमजान, शव्वाल, ज़ू अल-क़दाह, और ज़ू अल-हिज्जा शामिल हैं।

 

मुहर्रम की तारीख और महत्व: date and significance of muharram

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Muharram 2021: History of 'Al Hijri', Significance, Date
Muharram 2021: History of ‘Al Hijri’, Significance, Date

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चांद दिखने के आधार पर अल हिजरी Al -Hijri 1442 भारत में 21 अगस्त को निकला , जो मुहर्रम के पहले दिन को चिह्नित करता है।

मुहर्रम शब्द का अर्थ है ‘अनुमति नहीं‘ या ‘निषिद्ध’। दुनिया भर के मुसलमानों को युद्ध जैसी गतिविधियों में भाग लेने से प्रतिबंधित किया जाता है और इसके बजाय वे अपना समय नमाज और अल्लाह को याद करने में बिताते हैं।

दुनिया भर के मुसलमान इस दिन रोज़ा रखते हैं, जिसे ‘सुन्नत’ कहा जाता है क्योंकि पैगंबर मुहम्मद या सुन्नी परंपरा के अनुसार मूसा के बाद इस दिन मोहम्मद साहब  ने रोजा रखा था।

शिया मुसलमान, मौकों पर जश्न मनाने और जश्न मनाने से परहेज करते हैं और 10 वें दिन पैगंबर मुहम्मद के नाती इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए उपवास रोज़ा रखते है। 

 

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मुहर्रम का इतिहास (history of muharram)

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इमाम हुसैन के कर्बला की कहानी (Imam Hussain Karbala Story in Hindi)

आज का सीरिया जिसे कर्बला कहा जाता है। सन 60 हिजरी में इस्लाम धर्म में एक क्रूर और दमनकारी शासक यजीद खलीफा बन गया।  यजीद पुरे अरब पर शासन करना चाहता था। जिसके लिए उसकी सबसे बड़ी परेशानी थी हुजूर पैगम्बर मुहम्मद साहब के इकलौते आखरी चिराग हजरत इमाम हुसैन जो यजीद के सामने बिलकुल झुकने को तैयार नहीं थे। 

Karbala ki kahani, कर्बला की कहानी :

सन 61 हिजरी से यजीद जैसे पागल हो गया था और आम लोगो पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। इसी बिच हजरत इमाम हुसैन अपने परिवार और कुछ साथियो समेत मदीना से इराक के कूफ़ा सहर की और जाने लगे , लेकिन राश्ते में सीरिया यानि कर्बला के रेगिस्तान पर यजीद की फ़ौज ने इमाम हुसैन को रोक लिया। जब उन्हें कर्बला में रोका गया था तब मुहर्रम का 2 दिन था।

 फरात नदी 

वहां पानी के लिए सिर्फ एक नदी थी जिसे फरात नदी कहते है। जहाँ यजीद की फ़ौज खड़ी थी और 6 मुहर्रम से उनके पानी पर रोक लगा दी थी। इमाम साहब के पास न तो पानी था और न ही खाने की कोई व्यवस्था। और उनके साथ औरते और बच्चे थे लेकिन फिर भी इमाम साहब यजीद के आगे नहीं झुके। जब यजीद की सभी कोशिशें इमाम हुसैन को झुकाने की बेकार हो गयी। तब आखिर में युद्ध यानि जंग का ऐलान हो गया। 

Muharram 2021: History of 'Al Hijri', Significance, Date
Muharram 2021: History of ‘Al Hijri’, Significance, Date

 

यजीद की 80000 की फ़ौज के आगे इमाम हुसैन के साथ केवल 72 जांबाज बहादुर थे। और इन 72 जांबाजो ने जिस तरह से जंग किया उसकी मिशाल खुद दुश्मन यजीद की फ़ौज देने लगे। 

इमाम हुसैन अपने नाना और अपने अब्बा से सीखे हुए गुण, ऊँचे सोच और अल्लाह से बेइंतहा प्यार में अपने भूख, प्यास दर्द हर परेशानी पर जीत हासिल कर ली। 

Muharram 2021: History of ‘Al Hijri’ 10 Muharram 

10 मुहर्रम तक इमाम हुसैन अपने सहीद साथियो को दफनाते रहे और जब वो अकेले हो गए तब हुसैन ने अकेले जंग लड़ी और कोई भी उनके आगे नहीं टिक पा रहे थे , और आखिर तक जंग में कोई भी उन्हें नहीं मार सका। 

लेकिन आखिर में असर की नमाज के समय जब इमाम हुसैन सजदे में थे तब  यजीद के सैनिक ने उनको सहीद कर दिया। यजीद ने सोचा की हुसैन मर गया लेकिन इमाम हुसैन तो मर कर भी जिन्दा है हमेशा के लिए। यजीद जीत कर भी हार गया।  

 

आशुरा क्या है? What is Ashura?

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मुहर्रम के 10 वें दिन को दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा अशुरा के रूप में चिह्नित किया जाता है। जिस दिन नूह ने अरक को छोड़ दिया और जिस दिन मूसा को ईश्वर ने मिस्र से बचाया था, उस दिन की याद में स्वैच्छिक उपवास किया जाता है।

 

Muharram 2021: History of ‘Al Hijri’

 

शिया मुसलमानों के लिए, आशूरा आधुनिक ईराक के कब्बा में 680 ईस्वी में हुसैन की शहादत का शोक मनाने का दिन है।

मुसलमान शोक की रस्मों के साथ दिन को चिह्नित करते हैं और अपनी मौत को फिर से लागू करते हैं, जबकि शिया पुरुष और महिलाएं काले कपड़े पहने हुए सड़कों पर जुलूस निकालते हैं और अपनी छाती पर थप्पड़ मारते हैं और “या हुसैन” बोल कर याद करते हैं।कुछ लोग अपने आपको तलवार चाकू जैसे खतरनाक हतियारों से चोट पंहुचा कर इमाम हुसैन के दर्द को महसूस करते है।

उमय्यद खलीफा के दौरान, शिया इमाम और उनके अनुयायियों के घरों में हुसैन इब्न अली की हत्या का शोक प्रदर्शन किया गया था, लेकिन अब्बासिद खलीफा के दौरान अब्बासिद शासकों द्वारा सार्वजनिक मस्जिदों में यह शोक मनाया गया था। 

 

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आशुरा 2021 कब है? (When is Ashura)

 

आशूरा या 10 मुहर्रम 2021 का दिन 28 और 29 अगस्त 2021 (9 वीं और 10 वीं मुहर्रम तदनुसार) होने की संभावना है। हालाँकि, आशूरा 2021 की सही तारीख आपके स्थान और मुहर्रम 14 के चंद्रमा के दर्शन पर निर्भर करती है।

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मुहर्रम का शोक शिया, सुन्नी और विभिन्न जातीय समूहों की शाखाओं के बीच भिन्न भिन्न होता है। 

 

शिया – Shiya

दुनिया भर के शिया मुसलमान हर साल मुहर्रम और सफ़र के महीनों में हुसैन इब्न अली, उनके परिवार और उनके अनुयायियों की मौत की शोक प्रथा को याद करते हैं। वे उसे “शहीदों का बादशहा ” कहते हैं और उन्हें एक आध्यात्मिक और राजनीतिक उद्धारकर्ता के रूप में जानते हैं। लोगों की धार्मिक और राष्ट्रीय चेतना में अभी भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।

सुन्नी – Sunni

सुन्नी लोगो द्वारा इसे सिया से बिलकुल अलग मनाया जाता है। सिया की तरह सुन्नी खुद को चोट नहीं पहुंचते वल्कि सुन्नी लोग इमाम हुसैन को सहीद मानते है और उनकी याद में ढोल बाजो के साथ जश्न मानते है। रोज़ा रखते है। ताजिया निकलते है। 

 

मुहर्रम बनाने की रिवाजें (Rituals of making Muharram.)

 

लगभग 12 शताब्दियों के बाद, कर्बला की लड़ाई के आसपास पांच प्रकार के प्रमुख अनुष्ठानों का विकास हुआ। इन अनुष्ठानों में मजलिस अल-ताज़िया, विशेष रूप से अशुरा के दसवें दिन और लड़ाई के बाद पखवाड़े के अवसर पर कर्बला में हुसैन की कब्र की यात्रा (ज़ियारत आशूरा और ज़ियारत अल-अरबिया) शामिल हैं , सार्वजनिक शोक जुलूस।

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मेटम (metem)

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छठ पूजा का त्योहार

बहरीन में शिया मुसलमानों ने मुहर्रम की याद के दौरान अपनी छाती पर प्रहार किया।

अरबी शब्द मट्टम सामान्य रूप से शोक के कार्य या हाव-भाव को संदर्भित करता है; शिया इस्लाम में यह शब्द कर्बला के शहीदों के लिए विलाप का कार्य करता है। पुरुष और महिला प्रतिभागी इमाम हुसैन के प्रति समर्पण और उनकी पीड़ा को याद करने के लिए सार्वजनिक रूप से सेरेमोनियल चेस्ट बीटिंग (मातम) के लिए जमा होते हैं। कुछ शिया समाजों में, जैसे कि बहरीन, पाकिस्तान, भारत, अफगानिस्तान और इराक में, पुरुष प्रतिभागी अपने मातम में जंजीरों पर बंधे चाकू या छुरा शामिल कर सकते हैं। 

मट्टम के दो मूल रूप हैं:

  • पहला रूप  है  मैटम केवल एक के हाथों का उपयोग करता है, वह है, सिनह-ज़ानी या चेस्ट-बीटिंग
  • दूसरा रूप है जंजीरों, चाकू, तलवार और ब्लेड, यानी जंजीर-ज़ानी, क़ामा-ज़ानी, आदि जैसे उपकरणों के साथ मैटम।

दक्षिण एशिया में मातम सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील शिया पहचान चिह्न है, हालांकि इस अधिनियम की कई शिया इमामों द्वारा निंदा भी की जाती है। 

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Taziya
ताज़ीह

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शोक का एक रूप कर्बला की लड़ाई का नाटकीय पुन: प्रवर्तन है। ईरान में इसे ताज़िया या ताज़ियेह कहा जाता है। नाटकीय समूह जो तज़िया के विशेषज्ञ हैं, उन्हें तज़िया समूह कहा जाता है। बहरहाल, ईरान में छोटे पैमाने पर विशेष रूप से अधिक ग्रामीण और पारंपरिक क्षेत्रों में ताज़िया मौजूद थे। पहलवी वंश के पहले रेजा शाह ने ताज़िया का बहिष्कार किया था। लेकिन अभी तक कुछ देशो में यहाँ तक की भारत में भी ताजिया निकला जाता है। 

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7 भारतीय पौराणिक-कथा पुस्तकें 

नोहा

 

शहरों और राज्यों में शिया मुस्लिमों की संख्या बढ़ने से, मुहर्रम की रस्म का शोक और अधिक विस्तृत रूप में बदल गया। नौवीं शताब्दी में, विलाप परंपरा के रूप में विलाप और नौकायन का प्रचार हुआ। नोहा वह कविता और कहानी है जो मक़तुल हुसैन की दर्द भरी कहानिया है । नोहा में अरबी, उर्दू, फ़ारसी और पंजाबी जैसी विभिन्न भाषाओं की कविताएँ हैं। 

 

रोना

शिया परंपरा के अनुसार, रोना और आँसू बहना इमाम हुसैन की माँ और उनके परिवार के प्रति संवेदना प्रदान करता है, क्योंकि जीवित रिश्तेदारों को उनके शहीद होने पर रोने या विलाप करने की अनुमति नहीं थी जिसमें इमाम हुसैन, उनके परिवार शामिल थे (अपने दो बेटों सहित, एक छह महीने का बच्चा एक तीर से उसकी गर्दन पर और दूसरा 18 साल का शहीद हो गया जो अपने दिल में भाला लिए हुए था) और उसके साथी। विलाप  के लिए विलाप करना और रोना और उसके परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करना, इस प्रकार, हुसैन  के शोकगारों द्वारा किए गए अच्छे कार्यों में से एक के रूप में काम करेगा और उन्हें क़यामत के दिन उन्हें बचाएगा। 

 

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जुलूस (procession)

 

समाज की स्थिति के आधार पर, मुहर्रम के जुलूस एक शहर से दूसरे शहर में बदले जाते हैं। सामान्य रूप से हुसैनिया से शोक जुलूसों की शुरुआत होती है और प्रतिभागी अपने शहर या गांव की सड़कों से परेड करते है, अंत में वे मुहर्रम की रस्म के दूसरे शोक प्रदर्शन के लिए हुसैनिया लौट आते है। 

जुलूस इस्लाम की उपस्थिति से पहले अरबी राज्यों में मृत व्यक्तियों के शोक की रस्म थी। शोक-जुलूस के दौरान छाती को पीटना और चेहरे पर थप्पड़ मारना शामिल होता है। 

मुझे यकीं है आपको Muharram से related सारे douts क्लियर हो गये होंगे। तो दोस्तों आपको मेरा ये Muharram 2021: History of ‘Al Hijri’, Significance, Date पोस्ट कैसा लगा कमेंट में जरूर बताये। 

 

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